जैविक खेती से खुल सकता है भारतीय किसानों का भाग्य: डा0 राजा राम त्रिपाठीे

डाक्टर राजा राम त्रिपाठी ने बैंक का जाॅब छोड़कर हर्बल की खेती शुरू की, 400 से अधिक प्रजाति की जड़ी बूटियों को उगाने में महारत, यंग भारत ने उनसे बातचीत की
प्रस्तुत है बातचीत के अंश

अनिल शर्मा़+संजय श्रीवास्तव़+गोपाल गोयल

रायपुर। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के डाक्टर राजा राम त्रिपाठी किसान होने के साथ-साथ आयुर्वेद के भी कुषल ज्ञाता हैं। वे कवि लेखक, पत्रकार तथा सम्पादक और जमीनी स्तर पर गैर राजनीतिक ईमानदार जनसेवक भी हैं। किसानों को इन विदेशी कंपनियों के मकड़जाल से मुक्त कराने का उनका दुस्साहस सराहनीय है और हर नागरिक से सहयोग की अपेक्षा करता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि 1990 के दशक में वैस्वीकरण और नवउदारवाद ने भारत की परंपरागत खेती किसानी को अजगर की तरह लील लिया था और किसानों को कंगाल कर दिया था। डा0 त्रिपाठी ने बताया कि वैस्वीकरण के अजब गजब खेल को समझते समझते और संभलते संभलते 30 साल लग गए। जबकि आज किसान विदेशी कंपनी रूपी अजगर के जबड़ों में बुरी तरह फंस चुका है।
एक सवाल के जवाब में छत्तीसगढ़ के किसान डा0 त्रिपाठी ने उससे बाहर निकलने की पहल की। वे अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक हैं। इस दायित्व के नाते वे विदेषी कंपनियों के मकड़जाल में फंसे किसानों का मोह भंग करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि दरअसल वैस्वीकरण के दौर में विदेशी कंपनियों ने भारत में आकर किसानों को अपनी फसल उत्पादन बढ़ाने का लालच दिया और अपना हाइब्रिड बीज पेश किया। लालच ने किसानों को ऐसा फंसाया कि वह कंगाली के मुहाने पर आ गया। हुआ ये कि परंपरागत खेती किसानी में किसान अपनी फसल उत्पादन से ही अगली फसल के लिए बीज सुरक्षित कर लेता था। अर्थात हर नई फसल के लिए बीज खरीदने की कोई परंपरा ही नहीं थी। लेकिन हाइब्रिड बीज के उपयोग ने इस परंपरा को काल कवलित कर दिया और हर नई फसल के लिए हर बार नया बीज खरीदना मजबूरी बना दिया।
एक सवाल के जवाब में डाक्टर त्रिपाठी ने बताया कि विभिन्न प्रकार के अनाज, दलहन, तिलहन, फल, फूल, सब्जियां तथा वनस्पतियों के परंपरागत बीजों के संग्रह एवं संरक्षण की अपनी अपनी देशी एवं परंपरागत पद्धति किसी निश्चित तारीख या समय पर लुप्त नहीं हुई। यह कुछ उसी तरह हुआ जैसे बहुत ही खामोशी से हमारे परंपरागत मिट्टी के घड़ों और सुराही को इलेक्ट्रानिक फ्रिज ने घर से बेघर कर दिया। इसी क्रम में ट्रैक्टर नामक आधुनिक तकनीकि दानव ने गौ और गोवंष यानी हल और बैल आदि को खेती किसानी से पूरी तरह से बेदखल कर दिया। इतना ही नहीं बल्कि विदेशी कंपनियों के इस गिरोह ने रासायनिक खाद को पेश करके तो भारत की परंपरागत खेती किसानी की जैविक गोबर की खाद, हरी खाद, केंचुआ खाद, शैवाल खाद तथा सूक्ष्म जीवों वाली खाद को तो समूचा लील लिया।
भारत की खेती किसानी में लगभग पूरी तरह जड़ें जमा चुकी इन विदेशी कंपनियों ने इस देश के खेतों की मिट्टी, पानी तथा हवा तक को अपने रासायनों से जहरीला बना दिया है। मिट्टी की उर्वरा क्षमता क्षीण हो गई है और इसी के चलते उपलब्ध जल भी प्रदूषित हो रहा है। एक सवाल के जवाब में डाक्टर त्रिपाठी कहते हैं कि यदि 200 युवक किसानों को प्रषिक्षित करके उनके माध्यम से पूरे देश में अपना संदेश भेजा जाए तो अभी भी भारत की खेती किसानी को तबाही और कंगाली से बचाया जा सकता है।

संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, डॉ. राकेश द्विवेदी- सम्पादक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.

जैविक खेती से खुल सकता है भारतीय किसानों का भाग्य: डा0 राजा राम त्रिपाठीे

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