उम्मीदें इस दिल में हर पल ज़िंदा रख लेता हूँ

डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी की कलम से

उम्मीदें इस दिल में हर पल ज़िन्दा रख लेता हूँ ।
राहों में खिलते -मुस्काते फूल यकीं के रख देता हूँ ।।

मिल जाए हक़ हर किसान को , इसकी खातिर ।
मुंसिफ और हुक्मरानों तक दावे पेश कर देता हूं ।।

खुशियाँ सारे जहाँ की , तुम्हें हो जायें हासिल ।
हर इक सांस में ये दुआ, कई बार कर लेता हूँ ।।

बहती हवा जब भी मुझसे, ज़िक्र तुम्हारा करती है ।
पयामे – दिल को उसके हवाले फिर कर देता हूँ ।।

रूबरू मिलने के मौके जब होते नहीं ।
शब्दों से उन्हें छूने की कोशिश कर लेता हूँ ।।

.ख़ाब में जब- जब मेरे सामने तुम आ जाते हो ।
मत पूछो, फिर तुमसे , कितने शिकवे गिले कर लेता हूँ ।।

दौलत, शोहरत ,शफ़क़त जो भी जहाँ में हासिल है ।
एक तुम्हारी खुद्दारी पर, निछावर कर देता हूँ ।।

तुम क्या जानो , आलमे हिज्र में ,कभी कभी तो ।
तस्वीरों में रंग तुम्हारे सादेपन के भर लेता हूँ ।।

. डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी

साहित्यकार , पर्यावरणविद , कृषि उद्यमी , समाजसेवी

कोंडागांव , बस्तर , छत्तीसगढ़ ,

उम्मीदें इस दिल में हर पल ज़िंदा रख लेता हूँ

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