किसान बिल पर किसानों द्वारा सरकार का विरोध क्यों हो रहा है इसे समझने के लिए इन तीनों बिलों का बिंदुवार पोस्टमार्टम डॉ राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय संयोजक अखिल भारतीय किसान महासंघ आइफा ने किया है।डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा है कि ज्यादातर लोग किसान कानून के बारे में जानते ही नहीं है जबकि बिना जाने मुझे ही सरकार के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। जहां इस बिल में बड़ी खामियां भी हैं तो कुछ अच्छाइयां भी है।लेकिन खामियां ज्यादा और किसान से बिना बातचीत के लाए गए इस कानून ने ज्यादा समस्या उत्पन्न ने की है।
आखिर ये 3 कानून कहते क्या हैं उन कानूनों के नाम बड़े ही की लिस्ट तथा धामक है इसलिए सामान्य बोलचाल की भाषा में समझने की कोशिश करते हैं?
1) पहला कानून– यह किसानों को अपनी फसल को देश के किसी भी हिस्से में बेचने की छूट देता है. मंडियों के बाहर भी मंडियों के बिना भी
2) दूसरा कानून – यह कानून यह कहता है की कम्पनिया और किसान पहले से ही फसल की कीमत तय कर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर सकते है
3) तीसरा या नया कानून – इस कानून में किसानों बड़े व्यापारी या कम्पनियों को छूट दे दी गयी है की वो अब फसलों का (एसंशियल फसले कितनी भी मात्रा में भण्डारण कर सकते हैं
सरकार की चालाकी क्या है? सरकार ने बड़ी चालाकी से इन कानूनों को किसान कानून का नाम दिया है जबकि ये कानून बड़े व्यापारियों के भले के लिए बनाया गया है.
इन कानूनों से 5-7 वर्ष बाद किसानो पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा ये कानून किसानो का शोषण कैसे करेंगे इसको हम एक उदहारण (example) से समझते है.
दूसरे कानून में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग की छूट दे गयी है मान ली जिए कोई बिस्कुट बनाने वाली कंपनी
किसान से समझौता करती है की आप अपनी जमीन पर गेहूं उगाओ में आपको इतनी कीमत दे दूंगा.
किसान भी राजी राजी समझौता कर लेगा हो सकता है किसान को कृषि मंडियों से फसल की कीमत शुरुआत मैं ज्यादा भी मिले जब किसान को कीमत ज्यादा मिलने लगेगी तो किसान अपनी फसल को कृषि मंडियों में बेचने क्यों लेकर जायेगा.
इससे होगा ये की कृषि मंडियों में बैठे आतियाँ धीरे धीरे अपनी दुकाने बंद कर चले जाएंगे और कृषि मंडिया बंद होने लगेंगी.
जब कोई फसल मंडियों में बेचने ही नहीं जायेगा तो मंडिया कब तक चलेगी बंद ही होंगी इससे होगा ये की 5-7 वर्षों में किसान अपनी फसल बेचने के लिए केवल बड़ी कम्पलियो और व्यापारी पर ही निर्भर हो जायेगा.
वही तीसरा कानून जो व्यापारियों को फसलों के भण्डारण करने की छूट देता है उससे बिस्कुट कम्पनी अपने पास फसलों का 5-7 वर्षों मैं अधिक मात्र मैं भण्डारण कर लेगा.
जिससे बिस्कुट कंपनी 5-7 वर्षों बाद किसानों से जब कॉन्ट्रैक्ट करेगी तो वो कहेगी की मैं तो इतनी
कीमत दे सकता हूं फसल की तुम्हे कॉन्ट्रैक्ट करना है तो करो क्योंकि बिस्कुट कंपनी ने अपने पास पहले
ही अधिक मात्र मैं भण्डारण कर रखा है.
वो 5-7 वर्ष फसल नहीं खरीदेगा तब भी बिस्कुट कंपनी चलती रहेगी लेकिन किसान बेचारा क्या करेगा कृषि मंडी तो पहले ही बंद हो चुकी होगी इससे प्रभाव ये होगा की किसान को मजबूरी में आकर सस्ती कीमतों पर ही उस विस्कुट कंपनी से अपनी फसल को बेचने का समझौता करना पड़ेगा.
इस तरीके से बड़ी कम्पनिया और व्यापारी किसानों का शोषण करता शुरू कर देंगे.
वही जब किसान और कम्पनी के बीच किसी प्रकार का विवाद होता है तो किसान कोर्ट में कंपनी के सामने कैसे टिक पायेगा भारत में कोर्ट में निर्णय कितने समय लेता है और भस्टाचार कितना होता है ये सब तो आप जानते ही है
किसान खेती करेगा या कोर्ट मैं धक्के खायेगा वही जो कृषि मंडी के आढतिये होते है किसानों के लिए मिनी बैंक की तरह काम करते है किसान को जब अपनी किसी जरूरत के लिए रुपयों की जरूरत होती है तो किसान इन मंडियों के आढतियों से उधार ले लेते है जिसके के लिए किसानो को कोई कागजी कारवाही नहीं करनी पड़ती
बैंको की कागजी कारवाही इतनी लम्बी होती है की किसानो को लोन नहीं मिल पता है ये कृषि मंडिया
किसानों को आसान तरीके से लोन भी उपलब्ध करा देती है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से कृषि मंडिया बंद हो
जाएगी.
जिससे किसानों को लोन जैसी सुविधाओं के लिए बैंको पर निर्भर होना पड़ेगा और बैंक तो किसान की जमीन को पहले गिरवी रखेगा फिर लोन देगा
यही भारत में सीमान्त और मधु किसान (कम जमीन वाले किसान ज्यादा है अब इस किसान की पैदावार इतनी होती ही नहीं की यो दूसरे राज्यों में जाकर अपनी फसल को बेचे क्योंकि इससे ट्रांसपोर्ट की
लागत अधिक हो जाती है।
उदहारण के लिए जयपुर का किसान हरियाणा में अपनी फसल को बेचने के लिए लेकर जायेगा तो ट्रासपोर्ट लागत और अन्य टैक्स इलले अधिक हो जाति हि की किमाल के लिए दूसरे राज्यों में अपनी फसल बेचता फायद का सौदा नही होता है।
अतः पहला कानून जो किसानों को अपनी फसल कही भी बेचने की छूट देता है इससे किसानो को कोई फायदा नहीं मिलने वाला है.
5-7 वर्षी वाद होगा ये की कृषि मंडिया बंद हो जाएंगी और किसान बड़े व्यापारीयों, कम्पनीयों को सस्ते दामों पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर हो जायेगा इससे भारत का गरीब किसान और भी गरीब होता चला जायेगा।
डॉ राजराम त्रिपाठी ने कहा है कि यह विश्लेषण हमारे किसान भाई ने किया है. जोकि सच ही है। अतः मेरा निवेदन है देश के हर व्यक्ति से चाहे वो किसान है या नहीं अन्नदाता का कर्ज उतारने का वक्त आ गया है इन तीनों कानूनों का विरोध करें और किसान आंदोलन का सहयोग करें और अपनी भागीदारी जरुर करें ये वक्त है किसानों को उनका हक दिलाने का…
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