मुंबई– काली मिर्च की सफल खेती बस्तर जैसे पिछड़े अंचल में? वह भी आदिवासी किसानों के द्वारा? पहली बार सुनने में या बात शायद हजम ना हो, लेकिन यह एक चमकदार हकीकत है। इसे सफल कर दिखाया है बस्तर में पिछले 25 वर्षों से जैविक तथा औषधीय कृषि कार्य में लगी संस्था मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ने। सोने पर सुहागा यह कि प्रयोगशाला परीक्षणों से अब यह सिद्ध हो गया है कि बस्तर की इस काली मिर्च के औषधीय तत्व पिपरिन लगभग 16% ज्यादा पाया जा रहा है। और इस कार्य का जिस व्यक्ति ने बीड़ा उठाया और इसे इस मुकाम तक पहुंचाया उनका नाम है डॉ राजाराम त्रिपाठी।
बस्तर के बेहद पिछड़े आदिवासी वन गांव में पैदा हुए, पले बढ़े तथा बैंक अधिकारी की उच्च पद से त्यागपत्र देकर पिछले 20 वर्षों से काली मिर्च की इस नई प्रजाति की खोज में डॉ त्रिपाठी लगे हैं। उन्होंने अंततः नई प्रजाति एमडीबी16 के विकास के जरिए यह सिद्ध कर दिखाया कि केरल ही नहीं बल्कि भारत के शेष भागों में भी उचित देखभाल से इस विशेष प्रजाति की काली मिर्च की सफल और उच्च लाभदायक खेती की जा सकती है।
गांव जड़कोंगा, कांटागांव विकासखंड माकड़ी जिला कोंडागांव बस्तर के संतुराम मरकाम, राजकुमारी मरकाम, रमेश साहू तथा उनका पूरा समूह तथा सहित कई आदिवासी किसान सदस्य, मां दंतेश्वरी हर्बल समूह से कई वर्षों पूर्व जुड़े थे। उन्हें जोड़ने में तत्कालीन जनपद अध्यक्ष समाजसेवी जानो बाई मरकाम की भी प्रमुख भूमिका रही।
संतु राम मरकाम बताते हैं कि उन्होंने 27 पौधे काली मिर्च के लगाए थे। किंतु गर्मियों में साल (सरई) के सूखे पत्तों के नीचे आग लग जाने के कारण कई पौधे मर गए। फिर भी वर्तमान में 16 पौधे बचे हैं। जिनमें पिछले 3 वर्षों से काली मिर्च के फल आ रहे हैं। इन 16 काली मिर्च के पौधों से उन्हें कुल 16 किलो काली मिर्च प्राप्त हुई है। आज कोंडागांव आकर 500 रुपए प्रति किलो की दर से बेची गई। पूरा भुगतान उन्हें तत्काल नगद प्राप्त हो गया है।
मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग कुमार ने बताया कि स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया के द्वारा तय की गई आज की तारीख पर काली मिर्च का थोक मूल्य 330-350 किलो है। जबकि मा दंतेश्वरी हर्बल समूह की ओर से किसानों को प्रोत्साहन हेतु 500 प्रति किलो की दर से तत्काल भुगतान कर दिया गया। इतना ही नहीं, आगे यदि इस काली मिर्च का निर्यात संभव हुआ और उसमें यदि और अधिक मूल्य प्राप्त होता है तो वह लाभ भी इन साथी किसानों को वितरित किया जाएगा।
6 जनवरी को मां दंतेश्वरी हर्बल इस्टेट परिसर में आयोजित समारोह में सफल नवाचारी किसानों का नागरिक सम्मान शाल श्रीफल से किया गया । इस अवसर पर समाजसेवी जानो मरकाम, मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग त्रिपाठी, शंकर नाग, कृष्णा नेताम, संपदा समाजसेवी समूह के अध्यक्ष जयमति नेताम आदि शामिल रहे।
बड़ी बात यह है कि इस काली मिर्च (एमडीबी सोलह) की बेलें किसान की घर की बाड़ी में पहले से ही उगे साल के पेड़ों पर चढ़ाई गई हैं। बस्तर में साल की पेड़ों की बहुतायत है। यहां तक की बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है। इस संदर्भ में आगे की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि यह योजना बस्तर ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के किसानों की तस्वीर और तकदीर बदल सकती है। किंतु इसके लिए समुचित कार्य योजना तथा उसके क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार पर रोक लगाना बहुत जरूरी है।
उल्लेखनीय है कि हाल में ही परंपरागत बायोफोर्टीफाइड राइस यानी पोषक तत्वों से भरपूर काले चावल की खेती में भी यह मां दंतेश्वरी हर्बल समूह बढ़-चढ़कर भाग ले रहा है। इस कार्यक्रम में आदिवासी किसानों को “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर” की ओर से अश्वगंधा के जैविक बीज भी कृषि हेतु वितरित किए गए।